Monday, November 17, 2008

सौरव गांगुली

सौरव गांगुली का सन्यास
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भारतीय क्रिकेट को आक्रामकता के बिल्कुल नए और तीखे तेवर देने वाले पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफताजा सीरीज के बाद आखिरकार बल्ला टांगने का फैसला कर अपनीसेंस ऑफ टाइमिंगका जीवंत प्रदर्शन किया है।

उनके सुनहरे सफर के कई साथी जबकि टीम में बने रहने के लिए बहानों की आड़ ले रहे हैं, तब सौरव ने बता दिया है किभारतीय क्रिकेट में क्यों वे सबसे अनूठे हैं? दादा के ताजा फैसले ने महान क्रिकेटर विजय मर्च्ेट की याद दिला दी। मर्च्ेटकहा करते थे कि संन्यास उस वक्त लिया जाना चाहिए जब लोग पूछें अभी क्यों, कि उस वक्त जब लोग पूछें कि अभी तक क्योंनहीं?

खराब फॉर्म के कारण वनडे क्रिकेट से पहले ही विदा कर दिए गए सौरव भारतीय क्रिकेट के उन चुनिंदा क्रिकेटरों में से रहे हैं, जिन्हें क्रिकेट प्रेमियों ने जितना प्यार किया, उतनी ही आलोचना भी उनके खाते में आई।

इंग्लैंड के खिलाफ नेटवेस्ट सीरीज हो या फिर ऑस्ट्रेलिया को पटखनी देने का वाकया, सौरव जैसा तेज-तर्रार कप्तान पहलेभारत के लिए सपना ही था। युवी-कैफ द्वारा दिलाई गई जीत के बाद दादा का तीखे तेवर दिखाते हुए शर्ट उतारकर फहरानाएक ऐसा लम्हा था, जो इस पीढ़ी के दिलो-दिमाग पर ताउम्र चस्पा रहेगा।

गुरु ग्रेग से विवाद के साथ सौरव के करियर की उलटी गिनती शुरू हो गई थी, लेकिन उनकी जुझारू क्षमता ही कही जाएगी किकुछ चयनकर्ताओं और बोर्ड पॉलिटिक्स को धता बताते हुए वे भारतीय टीम में लौटने में कामयाब हुए। हालांकि इस दौरानकप्तानी की दौड़ से वे बाहर हो गए और धीरे-धीरे दबाव के कारण उनका व्यक्तिगत प्रदर्शन बहुत प्रभावित हुआ।

सौरव की एक और खासियत थी वह यह कि उनकी आक्रामकता सिर्फ शाब्दिक ही नहीं थी, बल्कि उन्होंने उसे अपने पुख्तानेतृत्व के दम पर भारतीय क्रिकेट टीम के हर एक क्रिकेटर में भर दिया था। टेस्ट क्रिकेट में सात हजार रन से केवल 112 रनदूर खड़े सौरव वनडे क्रिकेट में पहले ही 11363 रन अपने नाम रखते हैं। सौरव के संन्यास के बाद चाहे-अनचाहे सचिनतेंडुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, राहुल द्रविड़ और अनिल कुंबले पर भी संन्यास का दबाव बढ़ेगा।

अब जब कि सौरव गांगुली ने संन्यास का फैसला कर ही लिया है, तो भारतीय क्रिकेट प्रेमियों की यही दुआ रहेगी कि एक योद्धाके तौर पर मशहूर सौरव ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शानदार प्रदर्शन करके एक योद्धा की ही तरह विदा हों और भारतीय क्रिकेट केइतिहास मेंप्रिंस ऑफ कोलकाताकी यादें हमेशा बनी रहें।

चंद्रयान १

चंद्रयान
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Chandrayan-1
चांद पर पहुंचने के भारत के अभियान को आज एक और सफलता मिली है । चांद के पास भेजे गए यान चंद्रयान-I पर स्थापित ल्यूनर लेजर रेंजिंग इन्स्ट्रूमेंट (एलएलआरआई) आज चालू हो गया । चंद्रयान-I पर भेजे गए 11 पेलोड में यह यंत्र भी शामिल था । यह काम तब हुआ, जब यान चंद्रमा के दिखने वाले गोलार्द्ध के पश्चिमी हिस्से के ऊपर से गुजर रहा था । यह यंत्र वहां से डाटा भेजने का काम करता है ।

वैज्ञानिकों ने एलएलआरआई द्वारा भेजे गए आंकड़ों का शुरुआती आकलन कर लिया है । इससे यह संकेत मिला है कि यह यंत्र सामन्य ढंग से काम कर रहा है । इसरो द्वारा जारी एक बयान में ये बातें कही गई हैं ।

यह यंत्र चंद्रमा की सतह के एक हिस्से की तरफ इन्फ्रारेड लेजर किरणें भेजता है और उस प्रकाश के परवर्तित हिस्से को पहचान लेता है । इसके साथ ही यह यंत्र चंद्रमा की सतह की संरचना की ऊंचाई का सटीक आकलन कर लेता है ।

एलएलआरआई के आंकड़ों के विस्तृत विश्लेषण से चंद्रमा की आंतरिक संरचना के साथ-साथ चंद्रमा के विकास की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी । इसके पहले चंद्रयान-I के तीन अन्य यंत्रों को चालू किया जा चुका है । इसमें मैपिंग करने वाला कैमरा, रेडियेशन डोज मॉनीटर और मून इम्पेक्ट प्रोब शामिल हैं ।

भारतीय तिरंगे के साथ मून इम्पेक्ट प्रोब नामक यंत्र को 14 नवंबर को यान से छोड़ दिया गया । 25 मिनट बाद वह चंद्रमा की सतह पर वैसे ही गिरा, जैसे उसे निर्देशित किया गया था । कैमरे ने चंद्रमा तक पहुंचने के क्रम में पृथ्वी और चंद्रमा, दोनों की तस्वीरें लीं ।


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मेगस्थनीज-यह बिहार आने वाला प्रथम और प्रसिद्ध यात्री था जो सेल्यूकस का राजदूत बनकर मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था । मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक ‘इण्डिका’ में पाटलिपुत्र नगर और उसके प्रशासन की विस्तृत चर्चा की है ।

डिमॉलिक्स-डिमॉलिक्स बिन्दुसार के दरबार में यूनानी शासक का राजदूत बनकर आया ।

फाह्यान-फाह्यान ३९८ ई. में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय के शासनकाल में आने वाला प्रथम चीनी यात्री था । उसने ४१४ ई. तक भारत में रहकर नालन्दा, पटना, वैशाली आदि स्थानों का भ्रमण किया ।

ह्वेन त्सांग- ह्वेनसांग चीनी यात्री हर्षवर्धन के शासनकाल में आया था । उसने अपनी यात्रा वृतान्त सी. यू. की में किया है ।

इत्सिंग- ७वीं शदी में आने वाला दूसरा चीनी यात्री था जो ६७३-६९२ ई. तक भारत में रहा । उसने नालन्दा बिहार में शिक्षा ग्रहण की ।

मुल्ला तकिया- मुल्ला तकिया ने अकबर के शासनकाल में जौनपुर से बंगाल तक की यात्रा की और सल्तनत काल में बिहार के इतिहास का अध्ययन किया ।

अब्दुल लतीफ- मध्यकालीन बिहार में यात्रा करने वाला ईरानी था, जो गंगा नदी के रास्ते आगरा से राजमहल तक गया था । इसने सासाराम, पटना, मुंगेर तथा सुल्तानगंज का जीवन्त दृश्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की है ।

मुहम्मद सादिक- १६९१ ई. में उसके पिता पटना में दीवान खलीफा के पद पर नियुक्‍त हुए उसी समय मुहम्मद सादिक आया और अपने यात्रा विवरण का उल्लेख “सुबहे सादिक" में किया ।

मुल्ला बहबहानी- यह एक ईरानी धर्माचार्य था जिन्होंने बिहार के राजमहल, भागलपुर, मुंगेर, पटना और सासाराम आदि शहरों का वर्णन अपने यात्रा वृतान्त मिरात-ए-अहवल-ए-जहाँनामा में किया है । वह पहली बार १८०७ ई. में पटना आया । वह पटना को जयतुल हिन्द (भारत का स्वर्ग) कहता था ।

राल्च फिच- यह पहला अंग्रेज था जो १५८५-८७ ई. के योउर मोम् इस अ सेक्ष्य बित्च्ह् ।

हिन्दी की लोकप्रियता

विश्व में हिन्दी की लोकप्रियता
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विश्व के लगभग १३७ देशों में हिन्दी भाषी तथा हिन्दी प्रेमी हैं। मॉरीशस की संसद ने १२ नवम्बर २००२ को एक अधिनियम केद्वारा विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना की। इसके उद्देश्यों में प्रमुख थे -
. हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में प्रोन्नत करना।
. हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकृत भाषा बनाने
के लिए प्रयत्न करना।
. हिन्दी में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, संगोष्ठी, समूह विचार-
विमर्श तथा चर्चा एवं कवि-सम्मेलन जैसे सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का आयोजन करना।
. हिन्दी के विद्वानों को सम्मानित/पुरस्कृत करना।
. हिन्दी में शोधकार्य के लिए प्रलेखन केंद्र स्थापित
करना।
. अंतरराष्ट्रीय हिन्दी पुस्तकालय की स्थापना करना।
. अंतरराष्ट्रीय हिन्दी पुस्तक मेले का आयोजन करना।
१९९८ के पूर्व मातृ भाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकडे उपलब्ध हुए, उनमेंहिन्दी को तीसरा स्थान प्राप्त था। प्रो। महावीर सरन जैन, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निदेशक ने यूनेस्को की टेक्नीकल कमेटीफार वर्ल्ड लैंग्वेजज को प्रामाणिक आँकडों एवं तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध किया कि विश्व में चीनी के बाद दूसरा स्थानहिन्दी का है|

सत्यजीत रे का सिनेमा

सत्यजीत रे और सिनेमा
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पाथेर पांचाली को अपने प्रथम प्रदर्शन के लगभग चार दशक बाद एक बार फिर से देखना आज भी (लिंडसे एंडरसन के शब्दोंमें) घुटनों धूल में चल कर भारतीय यथार्थ और मानवीय दशा के हृदय में उतरना है।
भारतीय गांव की पीस डालने वाली गरीबी में पाथेर पांचाली लुइस माले के अज्ञात झुंड को नहीं देखती बल्कि एक मनुष्य कोदेखती है जो अपने प्रेम, प्रकृति और बचपन के आनंद में उतना ही अकेला है जितना मृत्यु के बिछोहकारी दुख में और अस्तित्वबनाये रखने के अपने अंतहीन दैनिक संघर्ष में। यह ग्रामीण गरीबी का मानवीय चेहरा है, इसके सांख्यकीय कष्टों का नहीं। यहमानवीय चेहरा ही हमें अपु या दुर्गा, सर्वजया या हरिहर को अपने बीच के ही एक मनुष्य के रूप में दिखाता है। हम जान पाते हैंकि हरिहर एक कवि है, एक बुद्धिजीवीः सर्वजया क्षमता और गरिमायुक्त नारी हैः अपु सौम्य संवेदनशीलता वाला लड़का है औरदुर्गा प्रकृति की सुंदर और निर्दोष बालिका है, वे हमारे ही एक अंग बन जाते हैं और हमारे भीतर कुछ बदल देते हैं और मानवताके प्रति हमारे दृष्टिकोण को भी।

सत्यजीत राय की काम की एक विशुद्ध ‘‘सौंदर्य शास्त्रीय’’ समीक्षा मुश्किल से ही संपूर्ण हो सकती है। राय शास्त्रीयतावादी थे, वेकला की उस पारंपरिक भारतीय दृष्टि के वारिस थे जिसमें सौंदर्य सत्य और शिव से अविभाज्य है। पश्चिमी संस्कृति की एकबहुत व्यापक श्रृंखला की सूक्ष्म समझजिसे 1949 में ज्यां रेनेवां ने ‘‘असाधारण’’ पाया थाके बावजूद यह भारतीयता है जोउन्हें भारत के संदर्भ में और उस माध्यम के संदर्भ में जो पश्चिम से आयातित था और जिसमें उन्होंने काम किया, महत्त्वपूर्णबनाती है। उनके काम के सैंतीस वर्ष भारत में एक शताब्दी से भी अधिक की अवधि में आये सामाजिक परिवर्तनों का इतिहासहै। शतरंज के खिलाड़ी में मुगल गौरव के अंततः अवसान से लेकर जलसाघर में सामंती जमींदार के पतन, अपु त्रयी में पारंपरिकसे आधुनिक होते हुए भारत में कमजोर होते ब्राह्मणवादी आंदोलन, देवी और चारुलता में भारतीय कुलीन वर्ग की बौद्धिकविचारों के प्रति जागरुकता, महानगर में महिला मुक्ति की शुरुआत तक, फिर प्रतिद्वंद्वी में स्वतंत्रता प्राप्ति के दशकों बादबेरोजगार युवक का आक्रोश, जन अरण्य और शाखा प्रशाखा में भ्रष्ट समाज में सामाजिक चेतना की अपरिहार्य मृत्यु और अंततःअजांत्रिक में मानवीय आवश्यकताओं के सरलीकरण की एक नयी कार्य सूची में आशा की एक चमक और मूलभूत मूल्यों के प्रतिआग्रह तक-राय का काम पहले आधुनिक भारत में मध्यवर्ग के सामाजिक विकास की आवश्यक रूपरेखा को तलाशता है औरफिर इससे आगे की शुरुआत करता है।

अध्धयन केन्द्र

मेरा अध्धयन केन्द्र
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मेरे
सेंटर का नाम "सेंटर फ़ॉर जापानी कोरियन एण्ड नॉर्थ ईस्ट एशियन स्टडीज़ (सी.जे.के.एन.ई.ए.एस.)" है। लेकिन सुविधा के दृष्टिकोण से हम छात्र इसे "कोरियन सेंटर" कह्ते हैं। यह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ’भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन केन्द्र (एस.एल.एल.सी.एस)’ के अन्तर्गत आता है जो कि भारत में भाषा शिक्षण का अग्रणी संस्थान है। कोरियन सेंटर दक्षिण एशिया के उन गिने-चुने संस्थानों में से एक है जहां कोरियन भाषा पढाई जाती है। भारत मे यह एकमात्र संस्थान है जहां कोरियन में बी.ए. और एम.ए. पाठयक्रम उपलब्ध हैं। इसके अलावा कुछ अन्य संस्थान जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय आदि कोरियन में सर्टिफ़िकेट और डिप्लोमा कोर्सेज़ करवाते हैं।

कोरियन सेंटर मे कुल १० शिक्षक और करीब १०० छात्र हैं। भारतीय शिक्षकों मे श्रीमती वैजयंती राघवन, श्री रविकेश मिश्रा, डॉ. नीरजा समजदार, श्री कौशल कुमार, श्रीमती पुष्पा तिवारी और श्री पी.एन.अजीता हैं तथा कोरियन शिक्षकों में डॉ किम, ली सौन्ग ग्यौन्ग, मिस छो, मिस ना आदि हैं। सभी शिक्षक अपने अपने क्षेत्र के जाने माने विद्वान हैं तथा कोरियन भाषा के शिक्षण में भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अग्रणी प्रोफ़ेसर्स कि श्रेणी में आते हैं। हमारे शिक्षक सिर्फ़ भाषा शिक्षण को सरल और रोचक बनाने के लिये हमेशा शोधरत रह्ते हैं बल्कि उन्होंने भारतीय छात्रों की ज़रूरत के अनुकूल कोरियन भाषा कि पुस्तकें भी लिखी हैं जो कि सभी छात्रों को सेंटर के द्वारा मुफ़्त वितरित की जाती हैं।


जे.एन.यू, कोरियन सेंटर के बी.ए.(प्रथम वर्ष)और बी.ए.(द्वितिय वर्ष) पाठयक्रमों के लिये प्रतिवर्ष प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है जिसमें पूरे भारत से हजारों प्रतिभवान छात्र शामिल होते हैं। आज से कुछ वर्ष पहले तक भारतीय छात्रों के बीच कोरियन भाषा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन पिछ्ले कुछ वर्षों में प्लेसमेंट के ऊंचे ग्राफ और बहुत सारी स्कॉलरशिप्स की वजह से कोरियन भाषा के लिये अप्लाई करने वाले छात्रों की संख्या मे भारी वृद्धि है। आज स्थिति यह है कि कोरियन सेंटर अधिक से अधिक मेधावी और उर्जावान छात्रों को आकर्षित कर रहा है। इस सेंटर के छात्र सिर्फ़ अपने सेंटर के कोर्सेज़ मे अव्वल ग्रेड लाते हैं बल्कि अन्य सेन्टर्स और स्कूल्स के ऑप्शनल कोर्सेज़ में भी उच्चतम अंक प्राप्त करते हैं। कई बार यह अन्य सेन्टर्स के छात्रों के लिए ईर्ष्या की वजह भी बन जाता है। लेकिन कोरियन सेंटर के छात्रों की सफ़लता का एक कारण यह है कि वे जे.एन.यू के पढने के सुअवसर तथा अपने समय का पूरा सदुपयोग करते हैं तथा व्यर्थ बात में अपना समय नष्ट करते हुए लक्ष्य पर अपना ध्यान केन्द्रित रखते हैं। यही वजह है कि आज कोरियन सेंटर के कै छात्र एल.जी, सैमसंग, ह्यून्डई, ऑरेकल, विप्रो और इन्फ़ोसिस जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों मे कार्यरत हैं तो कई छात्र विभिन्न स्कॉलरशिप्स पर कोरिया मे अध्ययन कर रहे हैं।

बराक ओबामा

पहले अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति
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बराक ओबामा एक ऐसी शख्सियत जिसने अमेरिका के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा। जातीय संघर्ष के इतिहास के गवाहरहे अमेरिका के वह पहले अश्वेत राष्ट्रपति है जो कभी बहुत कम आमदनी में एक सामुदायिक कार्यकर्ता के रूप में काम कियाकरते थे।

उनकी जीत इस मायने में महत्वपूर्ण है कि 45 साल पहले मानवाधिकार आंदोलन के प्रणेता मार्टिन लूथर किंग ने समानता काजो सपना देखा था वह आज सच हो गया। आमतौर पर भारत समर्थक माने जाने वाले 47 वर्षीय ओबामा अपने नाम और जातिके कारण जानते थे कि व्हाइट हाउस तक पहुंचने का उनका सफर कितना मुश्किल होगा। उन्होंने एक बार कहा भी था कि यहएक युगांतकारी परिवर्तन होगा। केन्याई पिता और श्वेत अमेरिकी माता की संतान ओबामा ने यह कर दिखाया। अमेरिकी जनताको उनमें वह सब नजर आया जिसकी उसे इस कठिन वक्त में दरकार है।

हारवर्ड में पढ़े ओबामा ने 21 माह के कठिन प्रचार अभियान के बाद दुनिया का सबसे ताकतवर ओहदा हासिल किया। पार्टी काउम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने पहले अपनी ही पार्टी की हिलेरी क्लिंटन और फिर वियतनाम युद्ध के सेना नायक जान मैक्केनको पीछे छोड़ते हुए अमेरिका में एक बडे़ बदलाव के संकेत के साथ व्हाइट हाउस की दौड़ में बाजी मार ली। ओबामा जनवरीमें शपथ लेकर अमेरिकी इतिहास के पहले अश्वेत राष्ट्रपति होने का गौरव हासिल करेंगे। 2009

ओबामा की जीत ने अमेरिकी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। देश सदियों जातीय वैमनस्यता का कोपभाजन बनारहा। आज से 200 साल पहले जिस सामाजिक बुराई का अंत हुआ उसकी सुखद अनुभूति का भी यह जीत प्रतीक है|