Saturday, November 15, 2008

लिंगदोह समिति

लिंग्दोह कमिटी और जे.एन.यू।
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लिंग्दोह कमिटी की सिफारिशों का कथित मकसद छात्रसंघ चुनाबों को धनबल और बाहुबल के चंगुल से मुक्त कराना था| यहबहुत आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है की इन्हीं सिफारिशों के आड़ में जे एन यू छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगा दी गई है, जहाँपिछले चार दशक से छात्र ख़ुद ही इन से निपटते आए हैं| २००७ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लिंग्दोह समिति कीसिफारिशें सभी कैम्पस के लिए अनिवार्य हो गई| लेकिन जिन कैम्पसों में भी इन सिफारिशों के अनुरूप चुनाव कराए गए मसलनदिल्ली यूनिवर्सिटी में वहां धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल नहीं रुका|ये सिफारिशें कहीं भी विश्वविद्यालय प्रशासनों को अपनेयहाँ छात्रसंघ चुनाव कराने के लिए बाध्य नहीं कर पाई| ऐसे में यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि लिंग्दोह की सिफारिशों केउल्लंघन का एकमात्र दोषी उसी जे एन यू को पाया गया, जहाँ छात्रसंघ के चुनाव पिछले ३७ सालों से लगातार बिना धनबल औरबाहुबल के होते रहे है|
देश की ज्यादातर युनिवर्सिटियों
और कालेज लिंग्दोह समिति के स्पष्ट निर्देश के बावजूद छात्रसंघ चुनाव नहीं कराते| लिंग्दोह समिति की सिफारिशों में स्पष्टलिखा है की ' छात्र प्रतिनिधि संस्थानों में छात्रों की नियुक्ति के लिए पूरे देश के विश्विद्यालयों और कालेजों को चुनाव अवश्यकराना चाहिए| हिंसा और कैम्पस लोकतंत्र का आभाव तमाम विश्वविद्यालयों का मुख्य चरित्र बना हुआ|

यदि जे एन यू छात्रसंघ के संविधान को उच्चतम न्यायालय के आदेश या लिंग्दोह कमिटी की सिफारिशों के उल्लंघन के बतौर हीदेखा जाता रहा और इन सिफारिशों के मुताबिक देश के तमाम विश्वविद्यालयों में लोकतंत्र की बहाली नहीं हुई तो छात्र यहनिष्कर्ष निकालने के लिए विवश होंगे की लिंग्दोह ये सिफारिशें कैम्पसों में शांतिपूर्ण और लोकतान्त्रिक चुनाव के मकसद से नहींबल्कि सत्ता द्वारा छात्र आन्दोलन के दमन के उद्देश्य से लाइ गई हैं|

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