Monday, November 17, 2008

सौरव गांगुली

सौरव गांगुली का सन्यास
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भारतीय क्रिकेट को आक्रामकता के बिल्कुल नए और तीखे तेवर देने वाले पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफताजा सीरीज के बाद आखिरकार बल्ला टांगने का फैसला कर अपनीसेंस ऑफ टाइमिंगका जीवंत प्रदर्शन किया है।

उनके सुनहरे सफर के कई साथी जबकि टीम में बने रहने के लिए बहानों की आड़ ले रहे हैं, तब सौरव ने बता दिया है किभारतीय क्रिकेट में क्यों वे सबसे अनूठे हैं? दादा के ताजा फैसले ने महान क्रिकेटर विजय मर्च्ेट की याद दिला दी। मर्च्ेटकहा करते थे कि संन्यास उस वक्त लिया जाना चाहिए जब लोग पूछें अभी क्यों, कि उस वक्त जब लोग पूछें कि अभी तक क्योंनहीं?

खराब फॉर्म के कारण वनडे क्रिकेट से पहले ही विदा कर दिए गए सौरव भारतीय क्रिकेट के उन चुनिंदा क्रिकेटरों में से रहे हैं, जिन्हें क्रिकेट प्रेमियों ने जितना प्यार किया, उतनी ही आलोचना भी उनके खाते में आई।

इंग्लैंड के खिलाफ नेटवेस्ट सीरीज हो या फिर ऑस्ट्रेलिया को पटखनी देने का वाकया, सौरव जैसा तेज-तर्रार कप्तान पहलेभारत के लिए सपना ही था। युवी-कैफ द्वारा दिलाई गई जीत के बाद दादा का तीखे तेवर दिखाते हुए शर्ट उतारकर फहरानाएक ऐसा लम्हा था, जो इस पीढ़ी के दिलो-दिमाग पर ताउम्र चस्पा रहेगा।

गुरु ग्रेग से विवाद के साथ सौरव के करियर की उलटी गिनती शुरू हो गई थी, लेकिन उनकी जुझारू क्षमता ही कही जाएगी किकुछ चयनकर्ताओं और बोर्ड पॉलिटिक्स को धता बताते हुए वे भारतीय टीम में लौटने में कामयाब हुए। हालांकि इस दौरानकप्तानी की दौड़ से वे बाहर हो गए और धीरे-धीरे दबाव के कारण उनका व्यक्तिगत प्रदर्शन बहुत प्रभावित हुआ।

सौरव की एक और खासियत थी वह यह कि उनकी आक्रामकता सिर्फ शाब्दिक ही नहीं थी, बल्कि उन्होंने उसे अपने पुख्तानेतृत्व के दम पर भारतीय क्रिकेट टीम के हर एक क्रिकेटर में भर दिया था। टेस्ट क्रिकेट में सात हजार रन से केवल 112 रनदूर खड़े सौरव वनडे क्रिकेट में पहले ही 11363 रन अपने नाम रखते हैं। सौरव के संन्यास के बाद चाहे-अनचाहे सचिनतेंडुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, राहुल द्रविड़ और अनिल कुंबले पर भी संन्यास का दबाव बढ़ेगा।

अब जब कि सौरव गांगुली ने संन्यास का फैसला कर ही लिया है, तो भारतीय क्रिकेट प्रेमियों की यही दुआ रहेगी कि एक योद्धाके तौर पर मशहूर सौरव ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शानदार प्रदर्शन करके एक योद्धा की ही तरह विदा हों और भारतीय क्रिकेट केइतिहास मेंप्रिंस ऑफ कोलकाताकी यादें हमेशा बनी रहें।

चंद्रयान १

चंद्रयान
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चांद पर पहुंचने के भारत के अभियान को आज एक और सफलता मिली है । चांद के पास भेजे गए यान चंद्रयान-I पर स्थापित ल्यूनर लेजर रेंजिंग इन्स्ट्रूमेंट (एलएलआरआई) आज चालू हो गया । चंद्रयान-I पर भेजे गए 11 पेलोड में यह यंत्र भी शामिल था । यह काम तब हुआ, जब यान चंद्रमा के दिखने वाले गोलार्द्ध के पश्चिमी हिस्से के ऊपर से गुजर रहा था । यह यंत्र वहां से डाटा भेजने का काम करता है ।

वैज्ञानिकों ने एलएलआरआई द्वारा भेजे गए आंकड़ों का शुरुआती आकलन कर लिया है । इससे यह संकेत मिला है कि यह यंत्र सामन्य ढंग से काम कर रहा है । इसरो द्वारा जारी एक बयान में ये बातें कही गई हैं ।

यह यंत्र चंद्रमा की सतह के एक हिस्से की तरफ इन्फ्रारेड लेजर किरणें भेजता है और उस प्रकाश के परवर्तित हिस्से को पहचान लेता है । इसके साथ ही यह यंत्र चंद्रमा की सतह की संरचना की ऊंचाई का सटीक आकलन कर लेता है ।

एलएलआरआई के आंकड़ों के विस्तृत विश्लेषण से चंद्रमा की आंतरिक संरचना के साथ-साथ चंद्रमा के विकास की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी । इसके पहले चंद्रयान-I के तीन अन्य यंत्रों को चालू किया जा चुका है । इसमें मैपिंग करने वाला कैमरा, रेडियेशन डोज मॉनीटर और मून इम्पेक्ट प्रोब शामिल हैं ।

भारतीय तिरंगे के साथ मून इम्पेक्ट प्रोब नामक यंत्र को 14 नवंबर को यान से छोड़ दिया गया । 25 मिनट बाद वह चंद्रमा की सतह पर वैसे ही गिरा, जैसे उसे निर्देशित किया गया था । कैमरे ने चंद्रमा तक पहुंचने के क्रम में पृथ्वी और चंद्रमा, दोनों की तस्वीरें लीं ।


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मेगस्थनीज-यह बिहार आने वाला प्रथम और प्रसिद्ध यात्री था जो सेल्यूकस का राजदूत बनकर मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था । मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक ‘इण्डिका’ में पाटलिपुत्र नगर और उसके प्रशासन की विस्तृत चर्चा की है ।

डिमॉलिक्स-डिमॉलिक्स बिन्दुसार के दरबार में यूनानी शासक का राजदूत बनकर आया ।

फाह्यान-फाह्यान ३९८ ई. में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय के शासनकाल में आने वाला प्रथम चीनी यात्री था । उसने ४१४ ई. तक भारत में रहकर नालन्दा, पटना, वैशाली आदि स्थानों का भ्रमण किया ।

ह्वेन त्सांग- ह्वेनसांग चीनी यात्री हर्षवर्धन के शासनकाल में आया था । उसने अपनी यात्रा वृतान्त सी. यू. की में किया है ।

इत्सिंग- ७वीं शदी में आने वाला दूसरा चीनी यात्री था जो ६७३-६९२ ई. तक भारत में रहा । उसने नालन्दा बिहार में शिक्षा ग्रहण की ।

मुल्ला तकिया- मुल्ला तकिया ने अकबर के शासनकाल में जौनपुर से बंगाल तक की यात्रा की और सल्तनत काल में बिहार के इतिहास का अध्ययन किया ।

अब्दुल लतीफ- मध्यकालीन बिहार में यात्रा करने वाला ईरानी था, जो गंगा नदी के रास्ते आगरा से राजमहल तक गया था । इसने सासाराम, पटना, मुंगेर तथा सुल्तानगंज का जीवन्त दृश्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की है ।

मुहम्मद सादिक- १६९१ ई. में उसके पिता पटना में दीवान खलीफा के पद पर नियुक्‍त हुए उसी समय मुहम्मद सादिक आया और अपने यात्रा विवरण का उल्लेख “सुबहे सादिक" में किया ।

मुल्ला बहबहानी- यह एक ईरानी धर्माचार्य था जिन्होंने बिहार के राजमहल, भागलपुर, मुंगेर, पटना और सासाराम आदि शहरों का वर्णन अपने यात्रा वृतान्त मिरात-ए-अहवल-ए-जहाँनामा में किया है । वह पहली बार १८०७ ई. में पटना आया । वह पटना को जयतुल हिन्द (भारत का स्वर्ग) कहता था ।

राल्च फिच- यह पहला अंग्रेज था जो १५८५-८७ ई. के योउर मोम् इस अ सेक्ष्य बित्च्ह् ।

हिन्दी की लोकप्रियता

विश्व में हिन्दी की लोकप्रियता
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विश्व के लगभग १३७ देशों में हिन्दी भाषी तथा हिन्दी प्रेमी हैं। मॉरीशस की संसद ने १२ नवम्बर २००२ को एक अधिनियम केद्वारा विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना की। इसके उद्देश्यों में प्रमुख थे -
. हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में प्रोन्नत करना।
. हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकृत भाषा बनाने
के लिए प्रयत्न करना।
. हिन्दी में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, संगोष्ठी, समूह विचार-
विमर्श तथा चर्चा एवं कवि-सम्मेलन जैसे सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का आयोजन करना।
. हिन्दी के विद्वानों को सम्मानित/पुरस्कृत करना।
. हिन्दी में शोधकार्य के लिए प्रलेखन केंद्र स्थापित
करना।
. अंतरराष्ट्रीय हिन्दी पुस्तकालय की स्थापना करना।
. अंतरराष्ट्रीय हिन्दी पुस्तक मेले का आयोजन करना।
१९९८ के पूर्व मातृ भाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकडे उपलब्ध हुए, उनमेंहिन्दी को तीसरा स्थान प्राप्त था। प्रो। महावीर सरन जैन, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निदेशक ने यूनेस्को की टेक्नीकल कमेटीफार वर्ल्ड लैंग्वेजज को प्रामाणिक आँकडों एवं तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध किया कि विश्व में चीनी के बाद दूसरा स्थानहिन्दी का है|

सत्यजीत रे का सिनेमा

सत्यजीत रे और सिनेमा
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पाथेर पांचाली को अपने प्रथम प्रदर्शन के लगभग चार दशक बाद एक बार फिर से देखना आज भी (लिंडसे एंडरसन के शब्दोंमें) घुटनों धूल में चल कर भारतीय यथार्थ और मानवीय दशा के हृदय में उतरना है।
भारतीय गांव की पीस डालने वाली गरीबी में पाथेर पांचाली लुइस माले के अज्ञात झुंड को नहीं देखती बल्कि एक मनुष्य कोदेखती है जो अपने प्रेम, प्रकृति और बचपन के आनंद में उतना ही अकेला है जितना मृत्यु के बिछोहकारी दुख में और अस्तित्वबनाये रखने के अपने अंतहीन दैनिक संघर्ष में। यह ग्रामीण गरीबी का मानवीय चेहरा है, इसके सांख्यकीय कष्टों का नहीं। यहमानवीय चेहरा ही हमें अपु या दुर्गा, सर्वजया या हरिहर को अपने बीच के ही एक मनुष्य के रूप में दिखाता है। हम जान पाते हैंकि हरिहर एक कवि है, एक बुद्धिजीवीः सर्वजया क्षमता और गरिमायुक्त नारी हैः अपु सौम्य संवेदनशीलता वाला लड़का है औरदुर्गा प्रकृति की सुंदर और निर्दोष बालिका है, वे हमारे ही एक अंग बन जाते हैं और हमारे भीतर कुछ बदल देते हैं और मानवताके प्रति हमारे दृष्टिकोण को भी।

सत्यजीत राय की काम की एक विशुद्ध ‘‘सौंदर्य शास्त्रीय’’ समीक्षा मुश्किल से ही संपूर्ण हो सकती है। राय शास्त्रीयतावादी थे, वेकला की उस पारंपरिक भारतीय दृष्टि के वारिस थे जिसमें सौंदर्य सत्य और शिव से अविभाज्य है। पश्चिमी संस्कृति की एकबहुत व्यापक श्रृंखला की सूक्ष्म समझजिसे 1949 में ज्यां रेनेवां ने ‘‘असाधारण’’ पाया थाके बावजूद यह भारतीयता है जोउन्हें भारत के संदर्भ में और उस माध्यम के संदर्भ में जो पश्चिम से आयातित था और जिसमें उन्होंने काम किया, महत्त्वपूर्णबनाती है। उनके काम के सैंतीस वर्ष भारत में एक शताब्दी से भी अधिक की अवधि में आये सामाजिक परिवर्तनों का इतिहासहै। शतरंज के खिलाड़ी में मुगल गौरव के अंततः अवसान से लेकर जलसाघर में सामंती जमींदार के पतन, अपु त्रयी में पारंपरिकसे आधुनिक होते हुए भारत में कमजोर होते ब्राह्मणवादी आंदोलन, देवी और चारुलता में भारतीय कुलीन वर्ग की बौद्धिकविचारों के प्रति जागरुकता, महानगर में महिला मुक्ति की शुरुआत तक, फिर प्रतिद्वंद्वी में स्वतंत्रता प्राप्ति के दशकों बादबेरोजगार युवक का आक्रोश, जन अरण्य और शाखा प्रशाखा में भ्रष्ट समाज में सामाजिक चेतना की अपरिहार्य मृत्यु और अंततःअजांत्रिक में मानवीय आवश्यकताओं के सरलीकरण की एक नयी कार्य सूची में आशा की एक चमक और मूलभूत मूल्यों के प्रतिआग्रह तक-राय का काम पहले आधुनिक भारत में मध्यवर्ग के सामाजिक विकास की आवश्यक रूपरेखा को तलाशता है औरफिर इससे आगे की शुरुआत करता है।

अध्धयन केन्द्र

मेरा अध्धयन केन्द्र
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मेरे
सेंटर का नाम "सेंटर फ़ॉर जापानी कोरियन एण्ड नॉर्थ ईस्ट एशियन स्टडीज़ (सी.जे.के.एन.ई.ए.एस.)" है। लेकिन सुविधा के दृष्टिकोण से हम छात्र इसे "कोरियन सेंटर" कह्ते हैं। यह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ’भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन केन्द्र (एस.एल.एल.सी.एस)’ के अन्तर्गत आता है जो कि भारत में भाषा शिक्षण का अग्रणी संस्थान है। कोरियन सेंटर दक्षिण एशिया के उन गिने-चुने संस्थानों में से एक है जहां कोरियन भाषा पढाई जाती है। भारत मे यह एकमात्र संस्थान है जहां कोरियन में बी.ए. और एम.ए. पाठयक्रम उपलब्ध हैं। इसके अलावा कुछ अन्य संस्थान जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय आदि कोरियन में सर्टिफ़िकेट और डिप्लोमा कोर्सेज़ करवाते हैं।

कोरियन सेंटर मे कुल १० शिक्षक और करीब १०० छात्र हैं। भारतीय शिक्षकों मे श्रीमती वैजयंती राघवन, श्री रविकेश मिश्रा, डॉ. नीरजा समजदार, श्री कौशल कुमार, श्रीमती पुष्पा तिवारी और श्री पी.एन.अजीता हैं तथा कोरियन शिक्षकों में डॉ किम, ली सौन्ग ग्यौन्ग, मिस छो, मिस ना आदि हैं। सभी शिक्षक अपने अपने क्षेत्र के जाने माने विद्वान हैं तथा कोरियन भाषा के शिक्षण में भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अग्रणी प्रोफ़ेसर्स कि श्रेणी में आते हैं। हमारे शिक्षक सिर्फ़ भाषा शिक्षण को सरल और रोचक बनाने के लिये हमेशा शोधरत रह्ते हैं बल्कि उन्होंने भारतीय छात्रों की ज़रूरत के अनुकूल कोरियन भाषा कि पुस्तकें भी लिखी हैं जो कि सभी छात्रों को सेंटर के द्वारा मुफ़्त वितरित की जाती हैं।


जे.एन.यू, कोरियन सेंटर के बी.ए.(प्रथम वर्ष)और बी.ए.(द्वितिय वर्ष) पाठयक्रमों के लिये प्रतिवर्ष प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है जिसमें पूरे भारत से हजारों प्रतिभवान छात्र शामिल होते हैं। आज से कुछ वर्ष पहले तक भारतीय छात्रों के बीच कोरियन भाषा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन पिछ्ले कुछ वर्षों में प्लेसमेंट के ऊंचे ग्राफ और बहुत सारी स्कॉलरशिप्स की वजह से कोरियन भाषा के लिये अप्लाई करने वाले छात्रों की संख्या मे भारी वृद्धि है। आज स्थिति यह है कि कोरियन सेंटर अधिक से अधिक मेधावी और उर्जावान छात्रों को आकर्षित कर रहा है। इस सेंटर के छात्र सिर्फ़ अपने सेंटर के कोर्सेज़ मे अव्वल ग्रेड लाते हैं बल्कि अन्य सेन्टर्स और स्कूल्स के ऑप्शनल कोर्सेज़ में भी उच्चतम अंक प्राप्त करते हैं। कई बार यह अन्य सेन्टर्स के छात्रों के लिए ईर्ष्या की वजह भी बन जाता है। लेकिन कोरियन सेंटर के छात्रों की सफ़लता का एक कारण यह है कि वे जे.एन.यू के पढने के सुअवसर तथा अपने समय का पूरा सदुपयोग करते हैं तथा व्यर्थ बात में अपना समय नष्ट करते हुए लक्ष्य पर अपना ध्यान केन्द्रित रखते हैं। यही वजह है कि आज कोरियन सेंटर के कै छात्र एल.जी, सैमसंग, ह्यून्डई, ऑरेकल, विप्रो और इन्फ़ोसिस जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों मे कार्यरत हैं तो कई छात्र विभिन्न स्कॉलरशिप्स पर कोरिया मे अध्ययन कर रहे हैं।

बराक ओबामा

पहले अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति
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बराक ओबामा एक ऐसी शख्सियत जिसने अमेरिका के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा। जातीय संघर्ष के इतिहास के गवाहरहे अमेरिका के वह पहले अश्वेत राष्ट्रपति है जो कभी बहुत कम आमदनी में एक सामुदायिक कार्यकर्ता के रूप में काम कियाकरते थे।

उनकी जीत इस मायने में महत्वपूर्ण है कि 45 साल पहले मानवाधिकार आंदोलन के प्रणेता मार्टिन लूथर किंग ने समानता काजो सपना देखा था वह आज सच हो गया। आमतौर पर भारत समर्थक माने जाने वाले 47 वर्षीय ओबामा अपने नाम और जातिके कारण जानते थे कि व्हाइट हाउस तक पहुंचने का उनका सफर कितना मुश्किल होगा। उन्होंने एक बार कहा भी था कि यहएक युगांतकारी परिवर्तन होगा। केन्याई पिता और श्वेत अमेरिकी माता की संतान ओबामा ने यह कर दिखाया। अमेरिकी जनताको उनमें वह सब नजर आया जिसकी उसे इस कठिन वक्त में दरकार है।

हारवर्ड में पढ़े ओबामा ने 21 माह के कठिन प्रचार अभियान के बाद दुनिया का सबसे ताकतवर ओहदा हासिल किया। पार्टी काउम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने पहले अपनी ही पार्टी की हिलेरी क्लिंटन और फिर वियतनाम युद्ध के सेना नायक जान मैक्केनको पीछे छोड़ते हुए अमेरिका में एक बडे़ बदलाव के संकेत के साथ व्हाइट हाउस की दौड़ में बाजी मार ली। ओबामा जनवरीमें शपथ लेकर अमेरिकी इतिहास के पहले अश्वेत राष्ट्रपति होने का गौरव हासिल करेंगे। 2009

ओबामा की जीत ने अमेरिकी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। देश सदियों जातीय वैमनस्यता का कोपभाजन बनारहा। आज से 200 साल पहले जिस सामाजिक बुराई का अंत हुआ उसकी सुखद अनुभूति का भी यह जीत प्रतीक है|

जे.एन.यू.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
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जे.एन.यू.भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व में विख्यात एक सर्व्वोच संस्थान है| यह भारत की एकमात्र विश्वविद्यालय है जो मानवता , सहनशक्ति , नए विचारों का उत्थान और सच्चाई की खोज में खड़ी उतरती है| मानव जाती को एक उच्ची सोच की ओर अग्रसरकराती है| जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना सन् १९६९ में होती है|जे.एन.यू.राष्ट्रीय संरक्षण , सामाजिक न्याय , धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक जीवन , अंतर्राष्ट्रीय समझ बुझ और वैज्ञानिक पहुँच को बढावा देती रही है|
पिछले दिनों जे.एन.यू.में चार दिनों तक पूर्व छात्रों का सम्मेलन हुआ जिसमें देश की जानी मानी हस्तियों ने शिरकत किया| चाहेवो यू.जी.सी.के चेयरमैन प्रोफेसर सुखदेव थोरात हों या प्रकाश करात सीताराम येचुरी सभी ने जे.एन.यू.में ख़ुद के बिठाये हुएदिनों को याद किया| सब का कहना था की पहकी बार आयोजित इस प्रकार के सम्मलेन में लगभग ५०० पूर्व छात्रों ने भाग लिया
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Saturday, November 15, 2008

देवनागरी

देवनागरी की विशेषताएँ
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) आदर्श लिपि का एक गुण यह माना जाता है कि एक वर्ण से एक ही ध्वनि संकेतित होती हो| देवनागरी में यह पूर्णतयाविद्यमान है;
उर्दू या अंग्रेजी में ऐसा नहीं है|
) दुसरा गुण यह बताया जाता है की एक ध्वनी के लिए एक ही वर्ण हो| यह भी केवल देवनागरी में मिलता है|
) देवनागरी में प्रत्येक अक्षर उच्चारित होता है| अंग्रेजी में कई शब्दों में अक्षर मूक है|
) देवनागरी व्यंजन संयोग - क्र, प्र , क्ता, क्ष , त्र, आदि- अंकित करने कि सुचारू पद्धति है| इस गुण के कारण शब्दों के लेखन में
थोडी जगह घेरती है|
) देवनागरी कि वर्णमाला का वर्णक्रम वैज्ञानिक है| स्वर पहले और बाद में व्यंजन |
) देवनागरी वर्णों के नाम उच्चारण के अनुरूप हैं|
) देवनागरी जिन भाषओं केलिए व्यवहृत होती है उनकी सभी ध्वनियों को अंकित करने में समर्थ है | अब तो इसका विस्तार
करके भारत भर कि भाषाओँ कि ध्वनियों के उपयुक्त बनाया जा रहा है|
) इस लिपि के लेखन और मुद्रण के अक्षर एकरूप है|
) कलाविद बताते हैं कि सीधी रेखा कि अपेक्षा वक्र रेखा अधिक सुंदर होती है| 'वक्र' से ही बांका शब्द बना है| देवनागरी का
प्रत्येक अक्षर वक्र है इसलिए बांका है , सुंदर है|
१०) यह लिपि स्वदेशी है| उर्दू रोमन लिपि विदेशी है|

लिंगदोह समिति

लिंग्दोह कमिटी और जे.एन.यू।
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लिंग्दोह कमिटी की सिफारिशों का कथित मकसद छात्रसंघ चुनाबों को धनबल और बाहुबल के चंगुल से मुक्त कराना था| यहबहुत आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है की इन्हीं सिफारिशों के आड़ में जे एन यू छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगा दी गई है, जहाँपिछले चार दशक से छात्र ख़ुद ही इन से निपटते आए हैं| २००७ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लिंग्दोह समिति कीसिफारिशें सभी कैम्पस के लिए अनिवार्य हो गई| लेकिन जिन कैम्पसों में भी इन सिफारिशों के अनुरूप चुनाव कराए गए मसलनदिल्ली यूनिवर्सिटी में वहां धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल नहीं रुका|ये सिफारिशें कहीं भी विश्वविद्यालय प्रशासनों को अपनेयहाँ छात्रसंघ चुनाव कराने के लिए बाध्य नहीं कर पाई| ऐसे में यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि लिंग्दोह की सिफारिशों केउल्लंघन का एकमात्र दोषी उसी जे एन यू को पाया गया, जहाँ छात्रसंघ के चुनाव पिछले ३७ सालों से लगातार बिना धनबल औरबाहुबल के होते रहे है|
देश की ज्यादातर युनिवर्सिटियों
और कालेज लिंग्दोह समिति के स्पष्ट निर्देश के बावजूद छात्रसंघ चुनाव नहीं कराते| लिंग्दोह समिति की सिफारिशों में स्पष्टलिखा है की ' छात्र प्रतिनिधि संस्थानों में छात्रों की नियुक्ति के लिए पूरे देश के विश्विद्यालयों और कालेजों को चुनाव अवश्यकराना चाहिए| हिंसा और कैम्पस लोकतंत्र का आभाव तमाम विश्वविद्यालयों का मुख्य चरित्र बना हुआ|

यदि जे एन यू छात्रसंघ के संविधान को उच्चतम न्यायालय के आदेश या लिंग्दोह कमिटी की सिफारिशों के उल्लंघन के बतौर हीदेखा जाता रहा और इन सिफारिशों के मुताबिक देश के तमाम विश्वविद्यालयों में लोकतंत्र की बहाली नहीं हुई तो छात्र यहनिष्कर्ष निकालने के लिए विवश होंगे की लिंग्दोह ये सिफारिशें कैम्पसों में शांतिपूर्ण और लोकतान्त्रिक चुनाव के मकसद से नहींबल्कि सत्ता द्वारा छात्र आन्दोलन के दमन के उद्देश्य से लाइ गई हैं|

निर्विवाद चैम्पियन

निर्विवाद चैम्पियन
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व्लादिमीर क्रैमनिक के साथ विश्वनाथन आनंद का कांटे का मुकाबला एक अरसे से देखा जा रहा है, इसलिए इस बार जबक्रैमनिक ने उन्हें सीधे मुकाबले के लिए ललकारा तो दुनिया भर के शतरंज प्रेमियों में इसे लेकर काफी उत्सुकता देखी गई| २००७ में फीडे और पीसीए के एकीकरण के बाद आनंद मेक्सिको में हुई एकीकृत विश्व चैंपियनशिप जीतकर द्वितीय विश्वयुद्धके बाद दुनिया के पहले निर्विवाद विश्व चैम्पियन बने थे| लेकिन इस मुकाबले का फार्मेट डबल राउंड रॉबिन वाला था, जिसमें हरप्रतिभागी को बाकी सभी के खिलाफ दो बार खेले का मौका मिलता है और सबसे अधिक अंक पाने वाले खिलाड़ी को चैम्पियनघोषित किया जता है| इस व्यवस्था में नाकआउट जैसी चुनौती का मजा होने की बात को आधार बनाते हुए क्रैमनिक ने विशीको खुली चुनौती दी| मुकाबले ले लिए आनंद राजी जरुर हुए लेकिन यह कहते हुए की उन्हें डबल राउंड राबिन फार्मेट ही पसंदहै और क्रैमनिक की चुनौती उन्हें बेमानी लगाती है| शतरंज के हलकों में सीधे मुकाबले को द्वंद युद्ध की तरह लिया जाता है, लिहाजा आनंद के इस ब्यान को उनकी हिचक की तरह देखा गया| जर्मनी के पूर्व राजधानी शहर बान में हुए इस मुकाबले परयूरोपियन मीडिया का फोकस कुछ ऐसा था, जैसे यह वर्ल्ड चैंपियनशिप से भी कोई बड़ी चीज हो | लेकिन अपने बयानों जैसीतुर्शी क्रैमनिक मुकाबले के दौरान देख नही पाए | अधिकतम बारह राउंड यह मुकाबला चलना था, जिसमें नौ राउंड तक मामलाबिल्कुल एकतरफा था| : बाजियां आनंद ने जीती थीं , जबकि क्रैमनिक ने सिर्फ तीन| यहाँ पहुचकर इतना तय हो गया किआनंद पन्द्रह दिन या उससे ज्यादा चलने वाला यह मैच किसी भी सूरत में हारने वाले नहीं हैं| लेकिन दसवें राउंड में पहुंचकरमुकाबला रोमांचक हो गया | सफेद मोहरों से खेलते हुए क्रैमनिक ने बीच बाजी में एक बिल्कुल नई चाल चलकर आनंद को मातदे दी| अब दो बाजियां बची थी| क्रैमनिक किसी तरह इन दोनों को अपनों झोली में डाल लेते तो मैच ड्रा हो जाता और उनकादर्जा आने वाले महीनों के लिए साझा विश्व चैम्पियन का हो जाता| इसके बरक्स आनंद को अपना खिताब बचाए रखने के लिएदो में से सिर्फ एक बाजी बराबर करनी थीं, जबकि ११वे राउंड उनकी सफेद मोहरें पास थी| शुरुआत उन्होंने ड्रा के ही इरादे सेकी और मात्र २४ चालों में क्रैमनिक को बाजी छिड़ने के लिए मजबूर कर दिया|

Friday, November 14, 2008

अमेरिकी उपराष्ट्रपति का चुनाव

अमेरिका में उपराष्ट्रपति का चुनाव
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अमेरिकी संविधान के मुताबिक उपराष्ट्रपति को कोई कार्यकारी शक्ति नहीं दी गई| वह राष्ट्रपति के एजेंट के तौर पर काम करता हैउपराष्ट्रपति सेनेट के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी संभालता है|
१८०४ में संविधान में संशोधन करके चुनाव के तरीके को बदला गया था| इसके तहत प्रेजिडेंट और वाइस प्रेजिडेंट पद के लिएअलग अलग बैलट बनाए गए | हालांकि इससे उपराष्ट्रपति पद का रुतबा कम हो गया | कोई भी इलेक्टर दोनों पदों के लिए एकही स्टेट के उम्मीदवारों को वोट नहीं दे सकता है| १८०४ के पहले उपराष्ट्रपति का चुनाव भी इलेक्टोरल कालेज ही करता था , लेकिन तब अलगअलग वोट नहीं पड़ते थे | जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलते थे , वह राष्ट्रपति बनता था | दूसरे नंबर पर रहने वालाउपराष्ट्रपति चुना जाता था|
अगर किसी भी उम्मीदवार को बहुमत नही मिलता है तो उपराष्ट्रपति चुनने का काम सेनेट कराती हैं| अगर यहाँ भी टाई कीस्थिति हो तो पूर्व वाइस प्रेजिडेंट यानी सेनेट का अध्यक्ष ख़ुद वोट डालता है और उसका वोट निर्णायक होता है | अब तक सिर्फ१८३६ में सेनेट के अध्यक्ष ने अपने वोट का इस्तेमाल किया है|

१८०४ से पहले के चुनावी तरीके की सबसे बड़ी खामी यही थी| राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अलग अलग पार्टियों के हो सकते थे| १७९६ के चुनाव में फेदारालिस्ट जान एडम्स पहले स्थान पर रहे| लेकिन दूसरे वोट के लिए फेदारालिस्ट इलेक्टरों के वोट बंटगए| इस तरह डेमोक्रेटिक रिपब्लिकन उम्मीदवार थॉमस जेफरसन दूसरे स्थान पर रहे| उनकी जीत से यह सुनिश्चित हो गयाकी दोनों सर्वोच्च पदों पर विपक्षी पार्टियों के व्यक्ति काबिज हुए|
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कंप्यूटर का प्रभाव

कंप्यूटर का हिन्दी भाषा और नागरी लिपि पर प्रभाव
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वर्तमान युग कंप्यूटर का युग है| यह मशीन तो अब हमारी जीवनचर्या का एक अविभाज्य और अनिवार्य अंग बनती जा रही है| स्कूलों के विद्यार्थी इससे अंकगणित , बीजगणित, और त्रिकोणमिति की सारी समस्याए हल कर लेते हैं | डाक्टर अपने मरीजोंका, वकील अपने मुवक्किलों और वादों का सारा विवरण भरते जाते हैं और आवश्यकता पड़ने पर आदेश द्वारा मशीन के परदेपर देख लेतेहैं| इंजीनियर , कलाकार , विज्ञानी , ज्योतिषी , सब अपने अपने काम का गठन , वितरण और फिर रूपायण करलेते हैं| सरकारी और निजी कार्यालयों , विद्यालयों, शोध-संस्थानों , बैंकों ,बीमा कंपनियों और निगमों ने कंप्यूटर को ही साराकाम-काज समेटकर अपने नए पुराने और होने वाले कार्यों के संचालन का माध्यम बना लिया है| शिक्षा के क्षेत्र में भी कंप्यूटर काप्रवेश हुआ है| अमरीका में शिक्षक या प्रोफेसर का सारा काम कंप्यूटर करता है|

इसनें कोई संदेह नहीं कि इस अदभुत मशीन का अधिक से अधिक लाभ अंग्रेजी भाषा को हुआ हैं| इसका मुख्या कारण यही हैकि कंप्यूटर का जन्म और विकास ही अंग्रेजी भाषी देशों में होकर अंग्रेजी माध्यम से अन्य देशों में व्यापक विस्तार हुआ| अब भीइसकी तकनीक शब्दावली अंग्रेजी में है| भारत में जब इसका प्रवेश हुआ तो बिजली के बिल , जलकर , और गृहकर के नोटिसऔर बहुत सी सरकारी सूचनाए अंग्रेजी में आने लगी | हिन्दी कि प्रगति रुक गई | भारत सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषाविभाग को होश आया और उसने भारतीय वैज्ञानिकों का ध्यान इस समस्या कि ओर आकृष्ट किया| फलस्वरूप बिड़लाप्रौद्दोगिक तथा विज्ञान संस्थान पिलानी ने पहला द्विभाषीय साफ्टवेयर ' सिद्धार्थ ' नाम से निर्मित किया| इसमें अंग्रेजी और हिन्दीके अतिरिक्त तमिल का भी कुंजी -पटल था| बाद में आई .आई.टी.,कानपुर ने हिन्दी कंप्यूटर निकाला| सी .एम.हैदराबाद सेलिपि' नाम का त्रैभाषिक कंप्यूटर बाजार में आया |अब तो लगभग एक दर्जन प्रकार के किबोर्ड बन गए हैं|
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मेरा शौक

शौक
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मनुष्य को हर दिन कुछ ना कुछ काम करना पड़ता है| काम करते वक़्त वह नीरसता का शिकार होने लगता है| यहाँ यह भीरोचक बात है कि हरेक मनुष्य की अपनी - अपनी शौकिया आदत होती हैं| वह अपने अवकाश के क्षणों में दुसरे कार्य मेंदिलचस्पी लेने लगता हैं| इसी दिलचस्पी को हमलोग शौक का नाम देते हैं| शौक एक प्रकार का प्रिय कार्य है| शौक मनबहलावका कार्य करता है| अपने दैनिक कार्य करते करते मनुष्य जब थक जाता है तब उसकी अपनी शौक विश्राम देती हैं| इससे वहताजा और स्फूर्तिवान बना रहता है| उसकी यह आदतें उसे आलसी और नीरस बनने से बचाती है| ठीक उसी तरह मेरी भी कुछआदतें है यानी की शौक है| जब भी मैं थोड़ा दुखी और परेशां होता हूँ तब अपने शौक के अनुसार कार्य करता हूँ| मेरा पसंदीदाशौक क्रिकेट खेलना और गाने सुनना हैं| दुनिया में हरेक तरह के लोग रहते हैं | बहुत सारे लोग अपने अपने शौक से धन भीअर्जित करते हैं| जैसे की दुर्लभ टिकट और चित्रकारी के लिए ऊँची कीमत दी जाती हैं| शौक का शैक्षणिक महत्व भी हैं| प्राचीनटिकट और सिक्के से हम प्राचीन सभ्यता की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं| इनसे भिन्न भिन्न देशों की सभ्यता की भी जानकारीहोती है| कभी कभी शौक झक का भी रूप धारण कर लेता है| बहुधा कोई कोई आदमी अपने शौक में आवश्यकता से अधिकव्यस्त रहता है | वह अपने मुख्या कार्य को भूल जाता है| वह अपने सारे समय और रुपये को इसमे खर्च करता है| वह अपनेस्वास्थ्य को बरबाद कर देता है|

गाँव

मेरा गाँव
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भारत देश गाँवों का देश है | उन्हीं में से एक गोपालगंज 'जो कि उत्तर भारत में स्थित है ' का रहने वाला हूँ | गोपालगंज जो नेपालसे बिल्कुल सटा हुआ गाँव है वहां कि जलवायु बहुत ही सुहावनी हैं| हालाँकि मेरा जन्म उसी से सटे सिवान जिले में हुआ| मुझे इसबात पर गर्व है कि इन दोनों जिलों ने एक से बढ़कर एक महान हस्ती को पैदा किया है| भारत के पहले राष्ट्रपति सिवान जिले केही रहने वाले थे| बिहार के दोनों पूर्व मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव और श्रीमती राबड़ी देवी गोपालगंज जिले के निवासी हैं| कुशी नगर जो कि गोपालगंज बॉर्डर से सटा हुआ है जिसकी वजह से यहाँ पर बहुत सारे भ्रमणकारी आते हैं| गोपालगंज जिलापौराणिक इतिहास के कारण भी प्रसिद्ध है | यहाँ का थावे मन्दिर भक्तगणों को अपनी तरफ़ आकर्षित करता है | यहाँ मीलों- मीलोंपैदल चल कर भक्तगण माँ दुर्गे का दर्शन करने आते हैं| मेरा गाँव आत्मनिर्भर है | यहाँ के लोगों को दैनिक आवाश्यक्तावों कीवस्तुओं के लिए शहर नहीं जन पड़ता है| मेरे गाँव की जमीन नीची है जिसके वजह से धान की उपज अच्छी होती है |मेरे गाँव केलोग सफाई महत्व को जानते हैं | वे घर के आस - पास कूड़ा करकट जमा नहीं करते|